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आचा०
| सूत्रम्
॥३६६॥
॥३६६॥
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समारंभ वर्णन-संकल्प कर्या पछी तेनां साधन भेगां करवां, तथा काया अने वचनना वेपारथी बीजाने परिताप विगेरेना लक्षणवालो छे.
आरंभ वर्णन-प्रण दंड (मन वचन काया) ना व्यापारथी मेळवेली तथा उपयोगमा लीधेली जीव हिंसा विगेरेनी क्रिया चाल करवी, ते आरंभ छे, अथवा आठ प्रकारना कर्मना समारंभ, एटले जोइती वस्तुने मेळववाना उपायो करवा ते.
सूत्रमा लोक शब्द छे, ते लोक क्यो छे, के जेना वढे आरंभो कराय छे ? ते बतावे छे.
आत्मा शरीरथी जोडाएलो छे, ते शरीर निभाववा लोको आरंभ करे छे, तेज प्रमाणे पुत्र दीकरी विगेरे माटे पण आरंभ कराय छे, एटले रसोइ विगेरे वनायवी पढे छे. तेवी रीते वीजा आरंभो पण करवा पढे छे एवं पूर्वे का छे.
प्रश्न-शरीर लोकशब्दना अर्थमां केवीरीने घटे.?
उत्तर-तमारूं कहे, वरावर नथी, कारण के परमार्थ दृष्टिथी जोनाराओने ज्ञान दर्शन चारित्ररूप अत्मतखने छोडीने बाकीनं ॐ शरीर विगेरे पण पारकुंज छे, कयुं छे के-वहारना पुद्गहुँ बनेलं अचेतनरूप कर्मनुं विपाकरूप पांचे शरीरो छे. तेथी शरीर
आत्म पण लोक शब्दवडे वताव्यो, तेथी कोइ शरीर माटे पापक्रियाओ करे छे, वीजो कोइ दीकरा दीकरी माटे, तो कोइ दीकरानी बहुने माटे तो कोइ न्यात माटे, तेज प्रमाणे संबंधथी जोडाएलां सगां, धाव माता माटे, राजा माटे दास दासी माटे नोकर नोकरडी माटे आरंभ करे छे, कोइ परोणा माटे करे छे, कोइ जुदा जुदा पुत्र विगेरेने प्रहेणक माटे करे छे, कोइ रात्रिमा खावा रांधे छे. कोइ प्रभातमा खावा रांधे छे, ते आ वधामां कर्म समारंभ छे, बळी विशेष कहे ई
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