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आचा०
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आवश्यक - दश वैकालिक - उत्तराध्ययन तथा आचारांगनी नियुक्ति छे विगैरे जाणवुं -
विजयना निक्षेपा नामस्थापना छोडीने द्रव्यमां ज्ञ शरीर विगेरे सिवाय व्यतिरिक्तमां द्रव्यवडे द्रव्यथी अथवा द्रव्यमां विजय ते छे, के कडवो तीखो कसाएलो विगेरे औषधथी सळेखम विगेरे रोगनो विजय थाय, अथवा राजा के महनो विजय थाय ते द्रव्य विजय छे. क्षेत्र विजय ते छ खंडने भरत विगेरे चक्रवर्त्तिओ जीते छे. अथवा जे क्षेत्रमां विजय थाय ते क्षेत्र विजय छे काळवडे जे विजय थाय छे, ते जेमके भरते साठ हजार वर्षे आखो भरतखंड जीत्यो ते काळ विजय छे कारण के तेमां काळनुं प्रधानपशुं छे. अथवा भृतक ( भरवाना ) काममां एणे मास जीत्यो अथवा जे काळमां विजय थयो ते पण काळ विजय छे—
भाव विजय ते औदयिक विगेरे एक भावनुं बीजा भावमां बदलाववा वडे एटले औपशमिक विगेरेथी थता विजयनुं स्वरूप. बतावीने चालु वातमां जे उपयोगी छे ते कहे छे.
अहीं भाव लोक मूळसूत्रमां लीवेल छे तेथी भाव लोकज कह्यो छे (छंदमां मात्रा वधवाथी भावने बदले भव लीधो छे) ( ते प्रमाणे कां छे. निर्युक्ति गाथा १६६ ना छेल्ला वे पदसां कहां छे के भावमां कषाय लोकनो अधिकार छे विगेरे जाणं) ते औदयिकभाव कषाय लोकनो औपशमिक विगेरे भाव लोक वडे विजय करवो ( कषायो मोहनीय कर्मना उदयथी छे, तेने शांत करवा - क्षय करवा ते कहे छे.) चालु विषयमा तेज जाणवानुं छे टीकाकार तेज कहे छे. “आठ प्रकारनो लोक अने छ प्रकार विजय ए वन्नेनुं स्वरूप पूर्वे कं. ते बन्नेमां भाव लोक अने भाव विजयथीज अहीआं प्रयोजन छे." आठ प्रकारना कर्म वढे लोक
सूत्रम्
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