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- "एगमेगे खल्लु जीवे अईअद्धाए असई उच्चागोए असई नीआ गोए, कंडगट्टयाए नो हीणे नो अइरित्ते” 18 आचा० ___एक एक जीव भूतकाळमां अनेकवार उंच नीच गोत्रमा आन्यो अने उंच नीचना अनुभाग कंडकनी अपेक्षाए हीन के अति- सूत्रम्
रिक्त नथी तेज कहे छे. ऊंच गोत्र कंडकबालो एक भविक अथवा अनेक भविकमांथी नीच गोत्रना कंडको ओछां नथी तेम वधारे है ॥३३३॥ पण नथी. एवं समजीने अहंकार के दिनता न करवी. ( अर्थात् समाधि राखवी तेज साधुपणुं छे.) ते बतावे छे. कारण के उंच है।
॥३३३॥ नीच स्थानमां कर्मना वशथी उत्पन्न थाय छे. तेज प्रमाणे वळ-रूप-लाभ विगेरे मदना स्थानोतुं असमंजसपणुं ( अस्थिरता) सद मजीने साधुए शुं करवू ते कहे छे, जाति विगेरेनो कोइ पण मद साधु न वांच्छे अथवा तेवी इच्छा पण न करे कारणके उंच नीच ट
स्थानमां आ जीव घणीवार उत्पन्न थयो, एवं समजीने कोण गोत्रनो-के-माननो अभीलाषी थाय.! अर्थात् मारु उंच गोत्र वधा 8 लोकोने माननीय छे. तेवू बीजार्नु नथी. एवं क्यो बुद्धिवान मनुष्य माने.!
में तथा वीजा जीयोए उंच अने नीच ए वां स्थानोने अनेकवार पूर्व अनुभवेलां छे तेज प्रमाणे गोत्रना निमित्ते मान-वादी कोण थाय. अर्थात् जे संसारना स्वरूपने सारी रीते जाणे छे, ते अहंकारी न थाय वली अनेकवार ते स्थानो पूर्वे अनुभवे छते रहमणां एकाद उंच गोत्र विगेरे अस्थिर स्थानकमां आवतां राग विगेरेना विरहथी गीतार्थ थएल कोण ममत्व करे!
एनो भावार्थ आ छे. के कर्मन परिणाम जेणे जाण्युं छे तेवो मुनि आ सेवाने धारण करे. अद्धपणाने क्यारे योजे के जो पूर्वे तेणे तेवून मेळव्यं होय तो. पण खरीरीते तेणे घणी वखत उंचगोत्र विगेरे मेळव्यु छे. तो ते ऊंचगोत्रना लाभथी के अलाभथी
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