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चा०
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छे प्रति उपेक्षणा एटले गुण दोषनो विचार करी गुणोने ग्रहण करवा अने लोभ छोडवो अथवा लोभनां कडवां फळने विचारी तेना अभावमा जे गुण तेने चाहीने ते लोभने जे त्यजे तेनेज अणगार कहेवो.
अने जे अज्ञानवडे मनमां मुंझाएलो छे ते अप्रशस्त मूळ गुण स्थानमा रही विषय कषाय विगेरेमा फसेलो होय ते दुःख पामे छे ए वधुं फरीथी सारो साधु याद करे के संसारी जीव अलोभने लोभ वडे निंदे अने विशयसुखमळतां तेने भोगवे अने लोभ छोडी साधु थइ पाछो लोभमां गृद्ध बनी वोळा कर्मवालो. कंइ पण जाणे नहीं तथा जुवे नहीं ( कामान्ध जन्मथी आंधळा करतां पण वधारे आंधळो छे ) अने हृदयमां चक्षु मीचावाथी विवेक र हित वनी भोगोने वांच्छे छे. अने पहेला उद्देशामां जे वतान्युं ते अहि जाणवुं. आ प्रमाणे उत्तम साधु विचारे छे के लोभी रात दिवस दुख पामतो अकाळमां उठतो भोग वांच्छुक अर्थ लोभी लुंटारो विचार | बगरनो घेला जेवो वने छे अने पृथ्वी विगेरे जीवोने उपघात करी शस्त्रो वारंवार चलावे छे.
वली ते पोतानी शरीर शक्ति वधारवा जुदा जुदा उपायो बडे आलोक परलोकना सुखने नाश करनारी क्रिया करे छे ते नीचे मुजब छे.
मांसथी मांस वघे तेथी पंचेन्द्रिय जीवोने हणे छे तथा चोरी विगेरे करे छे सूत्रमां बताव्युं छे एज प्रमाणे संसारी जीव सगांने पुष्ट करवा मित्रने पुष्ट करवा मथे छे एटले ते शक्तिवालां हशे तो हुं तेमनी मददथी आपदामांथी वचीश तथा प्रेत्य वळ वधारवा बस्त (घेटुं) विगेरेने ते हणे छे, तथा देववळ वधारवा (प्रसन्न करवा ) रांधवा रंधावांनी क्रिया (नैवेय करे छे) अथवा राजानुं बळ वधारवा राजानुं इच्छित करे छे, अथवा अतिथीनुं वळ वधारवा चाहे छे, ते अतिथी निःस्पृह होय छे. कां छे के;
सूत्रम्
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