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भवभावना प्रकरणे
धन्नाण संगहे चिय खित्तं तत्तो य दुट्ठभावो सो । जावाऽसाए विनडिओ चिट्टइ ना वासकालम्मि ॥ तह वरसि पवत्तो जह फुट्टेउं तड त्ति सो हिययं । मरिऊण गओ नरए मिच्छत्तारंभमाईहिं ॥१२॥ भमिही भवं अणंतं धन्नहिं अरक्खिओ तिलयसेट्टी । भण्णइ जहा न सरणं पुत्ता वि हु सगरचकिस्स ।
अशरणभावना
॥ इति तिलकवेष्ठिआख्यानकं समाप्तम् ॥
॥३०॥