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अयलउरं नाम पुरं जत्थ सया धन्नसंगहरुईणं । विरमइ महिड्ढियाणं न कया वि हुन्नभावकहा ॥१॥ तत्थ वि य महारंभो सेट्ठी परिवसइ तिलयनामो त्ति। संगहइ सोय तिलमुग्गमासनिप्फावचीही य॥ गोधूमचणयतूयरिमउट्टचउलयमसूरजुन्नलया । कोदवकुलत्थकंगूजवसणगोयारमाईणि ॥३॥ धन्नाई तओ जाए दुन्भिग्वे विकिणेइ सयलाई। सगडाई च सहस्से वहेइ तप्पच्चयं एसो ॥४॥ जलहिम्मि पवणेणं पेसइ धन्नाइं अन्नदीवम्मि | पंचिंदियजीवाण वि होइ वहो तस्स आरंभे ॥५॥ गेहे य तस्स अंते यहिम्मि धन्नेहिं पूरिए निचं । भणहणमाणाण असंखधन्नकीडाण कोडीहिं॥६॥
जो परियणो समग्गो स वेदिओ भमइ अप्पणा तह य ।
ताव चिय परिओसो होइ मणे तिलयसेहिस्स ॥७॥ | देतस्स य लेतस्स य इय धन्नाई इमस्स बहुकालो। समइक्कतो अह अन्नया य कोऽवि हु किरेयस्स ८। नेमित्तिओ कहेई जह अहुणा किर निमित्तसउणेहिं । निच्छइयं दुभिक्खं होही तो तेण लुद्धेण ॥९॥ घरसंतियं समग्गं दविणं धन्नाण संगहे खित्तं । अन्नं कलंतरेण कड़ेऊणं पिणेगगुणं ॥१०॥