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भवभावना प्रकरण
अशरणभावना
मगहाविसए गामो आसि पसिद्धो सुघोसनामो त्ति । जत्थ धणसंखरहिओ लोओ निद्धणयवग्गोवि॥ कुइअणो नाम तहिं निवसइ गाहावई बहुसमिद्धो । जो अजणो व्व निचं चिट्ठइ गोविंदपडिबद्धो ॥२॥ तेण वि य मीलियाई कमेण गावीण सिंगलक्खाई। गोवालसहस्साणं विरिंचिउं ताओ सयलाओ ॥३॥ अप्पइ रक्खणहेउं तह विहु मिलियाण ताण कजम्मि । बाहिं कलहंति इमे अह कुवियष्णो विभजिऊणं । इक्कमि गोउले संठवेइ। कसिणाउ ताउ सव्वाओ । धवलाणं रत्ताणं हलाहियाणं रवालीणं ॥५॥ गोहुमवन्नाण तहा नवप्पसूआण गब्भवंतीणं । उभयवियलाइयाणं पिहो पिहो गोउलं ठवइ ॥६॥ सयलाई अरन्नाइं तस्स चिय गोउलेहिं रुद्धाइं। हिंडइ य कमेण इमो सम्वेसु वि तेसु मुच्छाए ॥७॥ पोसेइ तरुणवच्छे जुझावइ मत्तवसहविंदाइं । उवजीवए सयं चिय घयदुद्धदहीण गिद्धप्पा ॥८॥ अण्णदिणे कुइयण्णो तत्थ अजिन्नेण तह कह वि पुण्णो । जह सरइ पाणियं हेढओ वि उड्ढं पि तं चेव ॥ उच्छलिओ य महंतो दाहो गावीओ तन्नएहिं समं । हिंडइ फंसंतो नियकरहिं मुच्छाइ अभिभूओ॥ हा गोउलाइं हा दित्तवसहतग्णयकुलाइं रम्माई । घयदुद्धगोरसाणि य पुणोऽवि किर कत्थ लम्भिहिइ ?। इच्चाइ पलवमाणो न रक्खिओ गोहणेण कुइयन्नो । मरि तिरिएम गओ भमिही य भवे अणंतम्मि ॥
॥ इति कुचिकर्णाख्यानकं समाप्तम् ॥
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