________________
इच्चाइ जपमाणे लोए रजक्खमो सुओ तेण । नामेण जयाणंदो बहुबुद्धिजुओ विणीओ य ॥४॥ | रजं समप्पिऊणं धरि बाहाइ सवहपुवं तं । तह पुत्त ! करेज अहं जह सलहिज्जामि लोएण ॥५॥ इय वोत्तणं घोरे पडिओ सो वेयणासमुग्घाए | नंदो पंचत्तगओ मोत्तं सव्वं पितं दविणं ॥६॥ पिउवयणसंकडे निवडिएण पुत्तेण चिंतियं हंत !। किं पिउणा किर विहियं सुहं जणो जेण सलहेजा ॥ इबाइ चिंतयंतो अदुट्ठभावोऽवि निययबुद्धीए । रक्खावेइ समग्गे जलासए तो भणइ लोओ ॥८॥ किं एवं? तो रक्खगपुरिसा पभणंति देह करमिहि । नीरस्स वि तो लगभइ पाउं नेउं च गेहम्मि ॥९॥ तत्तो पभणइ लोओ नंदो चिय ता वरं इमाहितो । गहिए वि तेण अत्थे जं न निरुद्धाइं नीराई॥१०॥ इय लोयाओ सलहं गाहेऊणं पिउस्स सब्वत्थ | होइ निराभारो किर पिउवयणाओ जयाणंदो ॥११॥ तत्तो य करहाणाई फेडए समहियाई सब्वाइं । कुब्बइ य वयं उचियं सव्वत्थ उयारचित्तण ॥१२॥ पालइ नीईइ पयं जाओ सव्वोऽवि धणकणसमिद्धो । नंदइ लोओ सव्वत्थ पत्थिवे तम्मि नीइपरो॥ इय रक्खिओ न नंदो अत्थेहिं गओ इहं पि चइऊण | तप्पच्चयपावेहिं अणुभविही भवदुहमणंतं ॥१४॥
॥ इति नन्दाख्यानकं समाप्तम् ॥
॥२७॥