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अप्पसमं अहमेव य वियरिस्सामि त्ति पभणिए तेण | चिंतेइ सुन्दरो पेच्छ किह ममं पभणए एसो?॥ | काउरिसो चिय किमहं धम्म कुणमाणओ अववसाओ । जं दिन्नमिमेणं चिय उवजीविस्सामि रंड व्व ॥ किंतु विहवुभवेणं गब्वेण समुन्नया न याति । वच्चावचविभागं ठाणमठाणं च न मुणंति ॥३२॥ विवावलेवनडियस्स तो अहं बंधवस्स एयस्स । सकिस्सामिन एवं दट्टुं सोऊण व अणऽक्खे ॥३३॥ विवरीयपरीणामत्तणेण इय सुन्दरो विचिंतेउं । गाढं पउहियओ जेट्टम्मि अदुट्ठभावेऽवि ॥३४॥ रासिं कस्सह साहुस्स संतियं किं पि गिहिउं कह वि । बोहित्थवणिजेणं पुणो वि दीवंतरेसु गओ ॥ निचमणुस्सुयहिओ निययाभिग्गहकओ सुनन्दो वि । धम्मपरो नाएणं अजइ रयणाण कोडीओ ॥३६॥ जह जह चड्ढइ विवो तह तह अणवरयमेव वेच्चेइ । सो तं सत्तसु खेत्तेसु मुणियघरजोव्वणसरूवो ॥ जह जह वेच्चइ एवं तह तह वड्ढंतरयणनिवहेण । तेणिन्भपयं पत्तं सलहिजतेण विवुहेहिं ॥३८॥ जह कणयरयणनिम्मियवहुयाहरणम्मि विजमाणेऽवि । होइ तुरंगो मुच्छाविवजिओ तह इमो विहवे ॥ न कुणइ कया वि मुच्छं परिमाणकडो अभिक्खभुवउत्तो । चिट्ठेइ वेच्चइ धणं जिण्णुद्धाराइठाणेसु ॥४०॥ वंदइ निययकयाई जिन्नाई नवाई चेइयहराइं । पवयणपभावणाओ कारइ जत्ताउ पूयाओ ॥४१॥ आहारवत्थपत्ताइएहिं पूएइ मुणिगणं निचं । दीणाण देइ दाणं कुणइ सधम्माण वच्छल्लं ॥४२॥
॥ ३९९॥