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| आसि इह सन्निवेसो नामेणं 'धन्नसंचओ जत्थ | बहुरिद्धिसंजुओऽवि हु अस्थित्तविवजिओ लोओ ॥१॥ | अन्नोऽन्नबद्धपेम्मा कुलउत्ता दो वि भायरो तत्थ । अडवीए कहाणं कयाइ सगडं भरेऊण ॥२॥ विणियत्ता ते दोऽवि हु लहुओ खेडइ धुरिट्टिओ सगडं । पुरओ वच्चइ पाएहिं जेट्ठबंधू तओ एसो ॥३॥ मग्गंमि चक्खुलिंडिं सणियं पेच्छइ तिरिच्छमभिजंतीं । तो भणइ लहुयबंधुं रक्खेज वराइयं एयं ॥४॥ टालेऊणं सगडं ग्वेडेजसु चिंतए तओ इयरो । किं रक्खियाए एयाइ ? ताव चुरिजमाणीए ॥५॥ केरिसओ होइ सरो ? निसुणमि तयं विचिंति एयं । खेडेइ तीइ उचरिं सगडं नियमणो एसो ॥६॥ सणिपणिदियभावेण सा वि सव्वं पि वुज्झइ मणे तो । जेट्टवयणे हिं तुट्ठा इयरेणं दूमिया वाढं ॥७॥ संचुन्निया य सगडेण विगयपाणा वसंत उरणयरे । धूया सा संजाया घरम्मि धणनामसेहिस्स ॥८॥ वीवाहिया कमेणं संपत्ता जोवणं तओ तीसे । गम्भम्मि समुप्पन्नो मरि सो जेट्ठकुलउत्तो ।।९॥ तुट्ठा य तयं गन्भं वहइ इमा णाइसीयउण्हेहिं । हियपत्थाहारेहिं सुहेण परिवालिउ कमसो ॥१०॥ समए पसवइ पुत्तं कारह बद्धावणं मणे तुहा । ललियंगओ त्ति नामं तस्स कयं गुरुपमोएण ॥११॥ परिवडढते सोक्ग्वेण तम्मि पुत्तम्मि तत्थ कालेण | लहुबंधू वि ह मरि उप्पन्नो तीइ गभम्मि ॥१२॥ १. पत्त-जे ॥
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