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भवभावना प्रकरणे
इय सो गेयपसत्तो चिंतइ न कयाइ रज्जकज्जाई । न गणइ य मंतिवयणाई नेय विद्वाण उवएसे ॥२९॥ तो तरुणसुसरडुंबीहिं सह पसंगम्मि वढमाणम्मि । अगणेउं इहपरभवदुहाई सेवइ अणायारं ॥३०॥ तत्तो नयरस बहिं ववणपरिवेढियं अइमहंतं । सो कारइ पासायं विवित्तमेत्थ द्विओ य पुणो ॥ ३१ ॥ सेवइ डुंबीओ सुणइ गीयमेयाण गायइ सयं पि । इय लद्धऽवगासेहिं डुंबेहिं पुरं पि तं सयलं ॥३२॥ विहालिइ निचं एत्तो लहुबंधवो य एयस्स । विक्कमपयावकलिओ गरुयपसिद्धिं गओ लोए ॥ ३३॥ मिलिऊण तओ परेहिं मंतिसामंतमंडली एहिं । लहुबंधुणो महाबलनामस्स समग्गमवि एयं ॥ ३४ ॥ साहेउं रामनरिंदचेट्टियं सिग्धमेव सो तत्थ । आहूओ संपत्तो एगंते रामनरनाहं ॥ ३५ ॥
वि सिक्खव अणेय हेउ दिट्टंतजुत्तिवयणेहिं । जा नाओ अचिगिच्छो गिद्धो मूढो अणप्पवसो ॥ ३६ ता धरि हत्थेणं पुराउ नीहारिओ स जीवंतो । रज्जे उण लोएणं महाबलो चैव संठविओ ॥३७॥ नयधम्मविक्कमेहिं रज्जं सो पालए जणाभिमओ । अभिमयडुंबीह समं रामोऽवि हु रजपन्भट्ठो ॥ ३८ ॥ देसेसु भइ भिक्खं धिक्कारिज्जइ जणेण सव्वेण । अह अन्नया य डुंबी संगहिया जस्स डुंबस्स || ३९॥
हणिऊण कत्तियाए निवाइओ तेण सो तओ मरिउं । जाओ हरिणो तत्थ वि सवणेणऽचंतमवहरिओ ||४०||
है
राम
नृपस्य
राज्यात् निष्कासनं
भिक्षाटनं विनाशश्च
॥ ३६८ ॥