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अवसिंदियाण तेसिं सयलजए वज्जए अयसढक्का । अइदुलहा वित्थिन्ना य नासए सयलरज्जसिरी ॥ १८ ॥ इराण किं विणस्सइ ? नामं पि हु जाण न मुणए कोsवि । ता देव ! इमो दोसो मा दीसउ लहुयओ हियए ॥१९॥
एयस्स लहू भाया जो जाओ संपयं सुओ तुम्ह । स मए दिट्ठो नीसेसरायलक्खणजुओ चैव ॥ २० ॥ ता तस्स च्चिय उचियं जुवरायपयं ति अम्ह् पडिहाइ । एएण पुणो रज्जं न होइ नासइ य मूलाओ ॥ २१ इच्चाइजुत्तिसंगयमुदाहरंते वि तम्मि मंतिम्मि | चिंतइ निवो नियच्छह अहो अमचस्स कुमइत्तं ॥२२॥ पोढमहीयकलं तह पुत्तं रुवाइगुणजुयं मोत्तुं । दावइ रज्जं जम्हा कलेजायस्स डिंभस्स ||२३|| इय आयई अदटुं संपयमेत्तण्णुणा नरिंदेण । भवियत्र्वयाइ ठविओ जेसुओ च्चिय पर नियए || २४|| | काले तओ जाओ रामो च्चिय नरवरो पिउम्मि भए । लहुबंधू विहु ठविओं जुवरायपए अमचेण ॥२५ देसो य तस्स दिनो कुमारभुत्तीइ कोइ अविउलो । नियभुयबलेण अन्नोऽवि अजिओ तेण परदेसो ॥ तत्तो अहोनिसिं चिय रामनरिंदो सुणेइ गेयाई । गाएइ ताई सयमवि रइ सयमहिणवाई च ॥२७॥
सिक्खवइ डुंब माई चिट्ठइ मिलिओ य ताण मज्झमि । खणमवि डुंबाई न ओसरंति तो तस्स पासाओ ||२८||
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