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भवभावना
प्रकरणे
कार्यदी नाम पुरी कलहंसा जीइ कमलसरसीसु । कीलंतीणं पुरकामिणीण जायंति अइगुरुणो ॥१॥ नामेण सोमसम्म समग्गवेयाण पारओ उ तहिं । असमिक्खियवेयंतो विप्पो परिवसइ धणकलिओ ॥ सोमसिरी नाणं गिहिणी एयस्स ताण य गुणड्ढो । आसि कयंबो नामेण वल्लहो जेहपुत्तो त्ति ॥३॥ सोय सया सुइवाए तह निरओ जह समग्गवत्थूणि । पायं अन्भोक्खंतो दुगंछमाणो परिभमइ ॥ ४॥ तो लोएणं एसो तहेव अम्मा पिऊहिं पन्नविओ । लोइयमग्गुत्तिन्ना सच्चा वि न रेहए किरिया ॥५॥ ता अमेत्तं एवं सुइवायं तं कुणंतओ लोए । उवहासं चिय पाविहिसि होसि सयमवि य उम्मत्तो ॥ ६ ॥ अह न गणइ सो किंचि वि रुहिरासुइमाइएस वत्सु । लग्गो तक्खणमेव य कुणइ सचेलो च्चिय सिणाणं ॥७॥
हुं हुं ति कुतो चि वत्थंचलठइयवयणनासो य । सव्वत्थ भमइ एसो अम्भोक्खंतो दुगुंतो ॥८॥ तत्तो य जोव्वणभरे गहिओ कमवि पभूयरोगेहिं । विरमंति पाउक्खालयाई कमवि अहोरते ॥९॥ गंडेहिं समग्गं पि हुं सरीरमावूरियं तओ तेसु । काई पच्चंति गलंति पूयरुहिरोहमणवरयं ॥१०॥ निस्सवइ पमेहो पज्झरंति अरिसाउ सोणियपवाहं । खासंतो खेलं निडुहेइ चिक्कणयमणवरयं ॥११॥ उमड़ मेनिचव य भुत्तं उयरम्मि न रहइ कया वि । पग़लेइ पीणसो नासियाए निज्झरणनीरं व ॥ १२
दुगंछात्यागे
कदम्बविप्रस्य
कथा
॥ ३३८ ॥