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अथाकामनिर्जरया देवत्वप्राप्ती जम्बुकाख्यानकमुच्यतेII महरा नामेण पुरी महुमहचरियाई जीइ गोवियणो । गायंतो पहियाणं कुणइ चिरं गमणविग्घाई ॥१॥ जियसत्तू नाम तहिं राया रन्ने वि सत्तुणो जस्स । न चयंति रायलच्छि तवरजसिरिं समणुपत्ता ॥२॥ कइया वि रायमग्गे निग्गच्छंतो पलोयए एसो । कालीनामं वेसं पासायसिरे पलोयंतिं ॥३॥ रूवाइगुणेसु तओ तीसे सो मुच्छिओ गहेऊणं । पक्खिवइ तमोरोहे भुंजइ सह तीइ विसयसुहं ॥४॥ कालेण सुओ जाओ तीसे कालो त्ति से कयं नामं । सह दुन्नएहिं एसो वड्ढेउं जोव्वणं पत्तो ॥५॥ | तत्तो हरइ धणाई जणस्स पाडइ घरेसु खत्ताई । लुंटइ वद्यासु जणं रोहइ बंदेसु गहिऊण ॥६॥ | विद्धंसइ नारियणं बला वि गिण्हेइ सारवत्थूणि । कालो विय पञ्चक्खो अहिए च्चिय वइ जणस्स ॥७॥
| कइया वि इमो धवलहरसंठिओ अडविगयसियालाणं । सह सोउं पुच्छइ केसिं जीवाण एस सरो? ॥८॥ Pel ओलग्गएहिं भणियं कुमर ! सियालाण तो भणइ एसो । आणह सियालमेगं बंधे तह कयं तेहिं ॥९॥
तो कीलयम्मि बद्धं कसेण ताडेइ सो इमं तत्तो । खिंक्खियइ सियालो तो मणम्मि जायइ रई तस्स ॥ PI अह ताडेइ पुणो पुण जा तस्स समग्गविगयचम्मस्स । निग्गयसोणियपवहस्स जीवियं वच्चए तत्थ ॥११
| तत्तो अकामनिज्जरवसेण सो वाणमंतरेसु सुरो । उप्पन्नो कालोऽवि हु सयलं नयरिं उवहवइ ॥१२॥
॥ २९५॥