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भवभावना प्रकरणे
तो इहि चिय जायं मन्नतो अप्पयं दढसरीरो । सयलजणसलहणिजं थिरसम्मत्तो कुणइ धम्मं ॥ ५९ ॥ अह अन्ना स जक्खो अवयरिऊणं धणंजए पत्ते । पभणइ तुज्झ सरीरं कुमार ! पडणं मए विहियं ॥ ६० ता महिससयं तं देसु मज्झ जं इच्छ्रियं पुरा तुमए । जत्तं पइदियहं वंदणं च जइ सचवयणो सि ॥ ६१ ॥ अह ईसि विहसिणं भणिओ कुमरेण सो महाजक्खो । तूण सायं तस्स नाणिणो नत्थि भुवणेऽवि ॥६२॥
अन्नो जेण सरीरं विहियं रोगेहिं वज्जियं मज्झ । न य कुंथुस्स वि इण्हि अहियं चिंतेमि मणसा वि ॥ न नमइ य मज्झ सीसं मोत्तुं रागाइदोसपरिमुक्कं । देवं पंचमहव्वयसुत्थे साह य अन्नस्स || ६४ ॥ इच्चाइ जंपिए निवसुएण विष्फुरियकोवदुप्पेच्छो । जंपइ जक्खो जइ एवमुवगयं तुज्झ रे दुट्ट ! || ६५ ॥ ता कूडधम्मवामोहियस्स अलिएक्कवायनिरयस्स । जइ मोडेमि न सिग्धं माहप्पमहीरुहं तुज्झ ||३६|| ता न सुरोऽहं न सरीरगं च तुह सज्जयं मए विहियं । इच्चाइ जंपिणं कहिं पि तत्तो गओ जक्खो ॥ निवतणओवि अणाउलचित्तो धम्मं करेइ थिरसत्तो । जक्खोंऽवि नियइ छिड्डे दंसेइ य भीसणसयाई ॥ * न य तस्स किं पि पहवइ सत्तेकधणस्स धम्मनिरयस्स । वह ओंसं तत्तो अहिययरं तम्मि कुमरम्मि ॥ ६९ ॥
राज
पुत्रस्य जिनधर्म
स्वीकारेण
यत्तस्य
प्रद्वेषः
॥ २४० ॥