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तेहिं विकहियं सव्वं कुडंतरिएण तं च सूरेण । निसुयं राया वि तओ निन्निवि एयाई घेत्तूण ॥ ४२|| चंदवणाइ पासे वचइ सूरेण सह तओ नमिउं । एए सूरसमक्खं वन्नइ से सीलबुद्धीओ ॥ ४३ ॥ तत्तो राया तह गायणाहं सूरो य चंदवयणा य । पगयाई अउज्झाए तुट्टेण य नरवरिंदे ॥४४॥ सूरस्स चंदवणाए तह य विउलं पसायवरदाणं । दिन्नं सुहेण कालो वच्चइ एयाण तो तत्थ ॥४५॥ अह अन्नदिणे सूरो पारद्धिं कुणइ बाहिरुजाणे । गिण्हेइ जरढसूयरसट्ठाई मारिडं तत्तो ॥ ४६ ॥ जलणेण पए बाहिरे वि परिभुजमाणओ एसो । दिट्ठो अइसयनाणेण मुणिवरेणं तओ भुत्ते ॥४७॥ भणियं हद्धी भवविलसियाई पेच्छह जहिं सपुत्तोऽवि । भुंजइ पिउमंसाई मारेउं निग्घिणो तत्तो ॥ ४८ ॥ को कुणइ इमं मुणिवर ! भणिए सूरेण तो मुणी भणइ ।
इह ताव तुमं चि कहमिव ? अह मुणिवरो आह् ॥ ४९ ॥
जो तुज्झ पिया नामेण दढरहो सो सकम्मदोसेण । इय सूयरभावेणं जाओ तुमए यसो भुत्तो ॥ ५०॥ बहुपचएहिं कहिए मुणिणा एयम्मि जत्तिकलियम्मि । सो निंदइ अप्पाणं पुणो पुणो तह य संविग्गो ॥ हम्म गओ बीए दिणम्मि घेत्तूण भारियं निययं । एड मुणिणो सयासे सोडवि हु तज्जोग्गयं नाउं ॥ भणेड़ अदुर्लभा जीवाणं माणुसाइसामग्गी । जो एवं पि हु लद्धं हारइ रसगिद्धिमाईहिं ॥ ५३ ॥
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