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नाणेण तीइ भणिए किं तं पडियाइ अहव विवरीयं? ।
इय पुच्छियम्मि गुरुणा अप्पडिवाइ त्ति सा भणइ ॥१६९।। तत्ता संविग्गो सो भणेइ मिच्छामिदुकर्ड जमिह | आसायणा मए केवलिस्स विहिया अयाणेण ॥ आढत्तो य करेउं खेयं जह सीसिणी वि मह एसा । अचिरंगीकयदिक्खा इत्थीमत्तं पि सिज्झिहिड ॥ चिरचिन्नवओ वि अहं जरजिन्नं देहपंजरं एयं । वहिऊण न याणे केत्तियं पि भमिहामि संसारं? ॥१७२ तो केवलिणा भणियं मा खेयं कुणह जेण तुम्भेऽवि । सुरसरियमुत्तरंता सिज्झिस्सह इह भवे चेव ॥ इय सोऊणं सूरी तब्वेलं चेव चलइ आसन्नं । गंगं नाऊण तओ सणियं सणियं वयंतोय ॥१७॥ पत्तो तीए सो आरुहइ जाव नावाए ताव तन्भारं । न सहइ नावा बुड्डइ उवविसइ जहिं जहिं एसो॥ कविएहिं नाविएहिं तो खित्तो पेल्लिऊण सुरसलिले । मिच्छुकडं भणंतो जलजीवाणं तओ एसो॥१७॥ सुविसुद्धभावपत्तो अंतगडो केवली तहिं जाओ । तद्देहस्स य पूया विहिया देवेहिं तुट्टेहि ॥१७७॥ तो तं पयागनामं तित्थं जायं तहिं जणपसिद्धं । गंगासलिले वुड्डा लहंति सुगई ति लोए य ॥१७८॥ नप्पभिई चिय जाया दढं पसिद्धी चिरं च विहरे । अज्जा वि पुप्फचूला सिद्धा धुयसयलकम्मंसा ।। राया वि पुप्फचूलो आराहे अग्बंडियसरुवं । सम्मं सावयधम्म वच्चड वेमाणियसुरेस ॥१८॥
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