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पुष्पचूलायाः
दीक्षा
ग्रहणं कैवल्यप्राप्तिश्च
भव
जो जीवदय न मेल्लइ बोल्लइ सचवइ, जो परधण परदारू सराउ न सच्चवइ । भावना
लोहमागहगहिउ न अप्पर वेलवइ, सो लीलइ 'ओसीरइ भीमभववेलवइ ॥१६०॥ प्रकरणे
इचाइ पियाए सुहासियाई सोऊण नरवरो तीए । अन्नियआयरियाणं पयमूले तो विभूईए ॥१६१॥
दिक्खं दावेइ सयं पि गिण्हए गिहिवए ससम्मत्ते । तो कुणइ पुप्फचूला वयं पवित्तिणिसयासम्मि ॥ : अह अन्नया दुभिक्खं नाउं आगंतुयं ठिया तत्थ । अन्नियपुत्तायरिया जंघाबलवजिया गच्छं ॥१६३॥
एगागिणोऽवि होउं अन्नत्थ विसज्जयंति करुणाए । जायम्मि उ दुभिक्खे बहु परियडिउ अचायंता ॥ भंजंति पुप्फचूलाउवणीयाई पि भत्तपाणाई । अह अन्नया कुणंतीइ नीइ दुकरतवच्चरणं ॥१६५॥ गुरुणो वेया वचं कुणमाणीए विसुद्धभावाए | पयडियलोयालोयं उप्पन्नं केवलं नाणं ॥१६॥ तो जं जं पाउरगं मणिच्छियं जं च भत्तपाणाइं। तं तं देइ गुरूणं नाउं नाणेण आणउं ॥१६॥ अन्नदिणे आणीए मणिच्छिए ओसहाइए गुरुणा । भणिया अजे! नाओ मणोगओ मज्झ कह भावो?॥ १. उत्तरइ-J. जे ॥२. अन्नियपुत्तायरियाण पायमले विभूईए-इतिरूपमुत्तरार्द्व सर्वासु-॥ ३. वच्चं च कुव्व
माणीए सुद्ध-वा०। J. जे० ॥
॥१८॥