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ISI कहिं वि पसरंततण्हा मायण्हियजलमइए णडियाई । भमियाई नाह ! अम्हे समयं जलमग्गिरमणाई ॥
नाव भमंतिहि दिट्ठ पररयमलकलिलु, गिरियडकडयपहि ट्ठिठ किं वि निज्झरसलिल । तं अवलोइवि दोहिं वि मणि चिंतिउ कह वि, एउ सलिलु न पहुप्पइ अम्हहं एकह वि ॥१२०॥ तो पभणइ आयरिण हरिणु पियनेहघणु, तुहं पिउ नीरु किसोयरि! मज्झ न अस्थि मणु ।
पडिबोल्लइ तणुयंगि कुरंगि वि एह वइ, समसिणेह रइरम्मह पिम्मह एह गइ ॥१२१॥ इय पुणरुत्तु वि वुत्तउं पियइ न एक्कयरु, कासु न होइ सिणेह देह संतावयरु । अह समचित्तई ताई सलिलि ओणमवि सिरु, दोन्नि वि तुंडिहिं बुड्डिहिं अच्छहिं जाव चिरु ॥१२२॥ हरिणो हरिणीए कए न पियइ हरिणी वि हरिणकज्जेण । तुच्छजले वुड्डमुहाई दो वि समयं विवन्नाई ॥ तझ्या वि आसि कहियं अम्हाण महेसिणा जहा तुज्झे । उप्पजिस्सह पुरओ जुयलेणं रायगेहम्मि ॥
तेण अम्हि नियकम्मधम्मसंचोइयइ, आयहं माणुसजम्मि रम्मि संजोइयई । ता जइ तं मयमिहुणु ताई भमियई भरहि, ताई वि जइ मुणिवयणइंदुरियहरई सरहिं ॥१२५॥ ता अवराहविहण दीण मं हणहि जिय, अलियवयणु परिहरहि हरहि मं परहं स्रिय । मं परमहिल निहालि वालि मणु परिग्गहह, सुरमहुमंस मं असहि जेण थिरु सुहु लहह ॥१२६॥
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