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भवभावना प्रकरण
अकयमलक्खएहिं नवि लक्खिउ, रमणिकडक्विहिं जो नवि लक्खिउ ।
जो निव्षुइपुरगमणमहारहु, पणमहु सो जिणु जम्मु म हारहु ॥११२॥ एमाइ धम्ममइयं अम्हे सोउं महेसिणो वयणं । वियलंतमइविमोहं हिययविसुद्धाई वुद्धाइं॥११३॥
ता अम्हिहिं पडिवन्नु भवन्नवसंतरणु, नहट्ठारसदोसु निरंजणु जिणु सरणु । मन्निय जावजीविय जीवहं नाह! दय, अमुणियमंसरसेहिं वि मंसनिवित्ति कय ॥११४॥ पुणु परिहरियविरोहहं पसमसमग्गलहं, सज्झायझुणिसवणदलियदुम्मइमलहं ।
अम्ह य मुणिपयपंकयकयसेवापरहं, दिवस सउन्नहं जति नयरि जिह नायरहं ॥११५॥ अह-कया वि मुणि मेल्लिवि गउ तं अम्ह वणु, नियपयपंकयरेणुपवित्तीकयभुवणु ।
नं जाणिवि मुणिमुक्कहं उम्मिल्लियभयहं, गिम्हयालु खयकालु पराइड वणिमयहं ॥११६॥ तहिं रवियरजलिउम्ह गिम्ह तण्हाउरई, उप्पेक्खिय खत्तियनर भयसंकाउरई। सुक्कतालुगलकंठई कंठागयजियइं, गिरिपरिसरपरिसकणदीणइं खिजियई ॥११७॥ कहिं वि कुवियहरिनहरचवेडचडक्कियइं, कहिं वि दावजालोलिझलक्क 'लिक्कियई ।
कहिं वि अभुल्लिरभिल्लभल्लिमुहमुक्काई, कहिं वि महल्लोरल्लिपुल्लिकमचुकाई ॥११८॥ १. 'लु-सं०२-जे०॥
महर्षेः समीपे हरिणहरिणाभ्यां स्वीकृतं सम्यक्त्वं मांसविरतिश्च
॥१७४॥