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तसु पणमिरसुरसिद्ध मउडमणिमसिणकम, तह वि य कीडपयंग वि पेच्छुइ अप्पसम | जड़ वि जाड़कुलरूवणाणतवसिरिसहिउ, तह वि अट्टमयकरडिकरडपाडणापहि ||१०४ ||
| उज्झियसयलविरोहा निव्भत्थियमच्छरा मुणिवरस्स । हरिहरिणाई सावयगणा वि पासं न मुंचति ॥ | अत्र्वाहय गुण सुवुरिसहं, कासु न हियउ हरंति ? । मुणिसंगय ते पसुगण वि, जं निव्वइर चरंति ॥ ता नाह ! किं न संभरसि तस्स राएसिणो सुभणियाई । एयाई अमयनीसंदबिंदुसंदोहसरिसाई ॥
जाव न जरकडपूर्याणि सव्वंगिउ गसइ, जाव न रोगभुयंगु उग्गु निद्दउ डसइ । नाव धम्मि मणु दिजउ किज्जउ अप्पहिउ, अज्जु कि कलि पयाण जिउ निच पहिउ || धम्म सो जि सचराचरुजीवहं दयसहिउ, सो गुरु वि घरघरणिसुरय संगमरहिउ | उज्झविसकसाउ देउ जो मुक्कमलु, एहु लेहु रयणत्तर चिंतिय दिन्नफलु ॥ १०९ ॥
| देवह धम्मह धम्मियहं खमदमदयह परिक्ख । बहुएहिं अंबासगुएहिं सित्त बहेडारुकख ॥११०॥
atres जो न पियरमणिरुद्धद्धतणु, जो अरोसु भयमुक्कु विमुक्का उहगहणु ।
जो अमोहु अन्नोऽनव्वायवयणुप, सो तुम्हां आमरणु सरणु जिण होउ पहु ॥ १११ ॥
।। १७३ ।।