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भव
भावना
प्रकरणे
हरिणत्वे अनुभूतदुःखवर्णने पुष्पचूला कथा
जसु न चित्ति संतोसु परिग्गह मइ बहुय, वालइ न य आरंभ कइया इवि जो लहुय ।
निसिभोयणरसगिद्धउ आलंबणरहिउ, अचिरेण विसो होइ नरयनयरह पहिउ ॥५५॥ मिच्छत्तपरायत्ता गिद्धा मंसेसु जीववहनिरया । अइगरुयारंभपरिग्गहेहिं निवडंति नरएसु ॥५६॥ सोऊण पुप्फचूला इय ताण मुणीसराण वयणाई । जणणीए दंसिए नरयदेवलोए य सुमरंती ॥५७॥ संवेयगया सह नरवरेण ते वंदिउँ विसज्जेइ । पइभीईए न भणि किं पि तरइ रामइ दियहाई ॥५८॥
अवरहं दिणि दिप्तरयणमणिपजलिइ, वाररमणिमणिकिंकिणिकलकलयलकलिइ। कप्पूरागुरुनिम्महंतपरिमलबहलि, चित्तसालभवणोवरि निवसंतह विमलि ॥५९॥ अह विम्हय विप्फारियनयणविसालियइं, लीलई चित्तु विचित्तु निहालिउ बालियई। कहिं वि नविरसामंतमउडमसिणियचलणु, नियइ नाहु अत्थाणभवणि रिउभडदलणु ॥३०॥ कहिंवि नियइ अइमणहरि रइहरि रइकलिउ, जलकीलइ कीलंतु कंतु पियघरणिजुउ । कहिंवि गइंदि निविड दिट्ठ मयजलपवहि, पणइहिं पणमिजंतु जंतु निवु रायपहि ॥३१॥ तुरयथट्टसंघहि कहिं वि बहियालिठिउ, अद्धासियवरवाह नाहु तर्हि सच्चविउ । कत्थइ नियडिनिलुक बहुयनरपरियरिउ, नियइ रमंतु भमंतु मुद्ध पारद्धिपिउ ॥३२॥
॥१६६॥