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इय वीयरायसेवानिरयाणं दाणसीलकलियाणं ।
नहु होति दुल्लहाई सुरलोयनरेसरसुहाई ॥४९॥ जो उण हिंसइ जीव अलिउ जंपइ वयणु, । परधणु परतिय भुंजइ, संतोसइ न मणु । । कोहमाणमायाउरु लोहपवंचपरु, सो निवडइ निरयावडि दुत्तरि अवसु नरु ॥५०॥ नरयवालजायणहं घणहं जो देइ ऊरु, जो उडुइ निवडंतिहिं वजासणिहि सिरु । जो नियमसइ सुइरु नरइ असणहं मणइ, । सो मंसरसिहि गिद्ध जीव निद्दउ हणइ ॥५१॥ तसु विलिम विसदृइ तुच्छिम उच्छरइ, उम्मिलइ मणदुहिम झुट्टिम वित्थरइ । इहलोए विं निहीणु दीणु जो चप्फलउ, तासु होइ परलोउ नरयदुक्खप्फलउ ॥५२॥ तसु धीरिम ओसरइ निहीं रिम अणुसरइ, निक्करुणिम संग लइ जु परधणु अवहरइ। इद्दलोए वि तस सुंदरु दुक्कर संपडइ, परभवि नरयमहंधयारि दुत्तरि पडइ ॥५३॥
जो परधणु परदारु पवंचइ, सो संपय सोहग्गु पवंचइ।
जो अकरुणमणु परु संतावइ, सो न होइ सुहपरु संतावई ॥५४॥ १. 'रिणिव अ-जे०J.॥