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भवभावना प्रकरणे
पुष्पचूलाये अन्निका
पुत्रा
चार्यस्य धर्मोपदेशः
जिणभासिउ सच्चउ चवहु, मणु पसरंतउ पावि निवारहु । मं वंचउ पर उवयरहु, 'दुलहउ माणुसजम्मु म हारहु ॥४३॥ परधणु परकलत्तु जो वजइ, तसु जसुपडहउ तिहुयणि वज्जइ । सयलामरबहुमन्नियसासणु, सुरवइ तासु देइ अद्धासणु ॥४४॥ खुडियसीलगुणु पेहुणुमेहुणुगिद्धमइ, पुरिसु परब्बसु पडइ अहोमुहु अहरगई। तो परिहरि परदारु दारु नारयपुरहं, जेण रम्मि सोहम्मि होह पहु सुरवरहं ॥४५॥ परधणु परतिय परिहरहु, विसयपमाउम्माउ न किजइ । परसंताविं सोक्खु कउ, न तं उग्गमइ ज जि पयरिजह॥४६॥ जो सपरिग्गहु सुहु परिमाणइ, सो सुरवरहं सहई परिमाणइ । संति विहविं मण संतोसहु, लोहाउरहं एउ संतोसहु ॥४७॥ दय किजइ, न हरिजइ, निहणजइ मयण, सच्चउं पिउ जंपिज्जइ, पिजइ गुरुवयणु ।
निसिभोयणु परिवजहु कयबहुकुगइदुहु, संतोसिं मणु तोसहु, पोसहु सुगइ सुहु ॥४८॥ १. दुल्लहमाणु -सं०२॥ २. संतइ विहवइ-जे० सं०२°3.।।
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