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जह इच्छहु सुरलच्छिसुहाई निरंतरई, जइ भवगयहं न इच्छहु दुक्खपरं परई ।
ता जीवहं सुहु दिज्जइ दुक्खु न दावियइ, दिन्नई 'दुक्खई दुक्ख सुहई सुह पाविग्रई ॥३७ जं दिजइ तं पावियइ, परभवि, एउ जणि सच्च बुच्चइ ।
'दुक्खं दुक्खु सुहेण सुहुं, तं दिज्जइ जं अप्पणु रुच्च ॥ ३८ ॥
जो निद्दाइ दवग्गिजलंत वर्णतरिहिं, जो पर पियह पोलिउ पुलि ओहरिहिं ।
जो जीवणुमण कालकूड कवलिहिं गसइ, सो जिणधम्मि पमायड़ विस इहि अभिरमइ ॥ ३९ जल लगय मं जीव विणासहु, निष्फलु धम्मु दयाइ विणु सहु ।
कुमयकुडयनडियम होसहु, पिज्जउ जिणउचएस महोस ||४०||
लद्धा दियह म हारबहु, दुलहउ माणुसजम्मु म मुज्झ । जिउवएसिण करहु जण (अजिज्झउ), जीवदयावरधम्मु जिं सुज्झहु ॥ ४१ ॥ असियइ भक्खु जं पे तं पिज्जइ, सच्चरं अपिसुणु पिउ जंपिज्जइ ।
इंदियवग्गु समग्गु वि दम्मुइ, तो लीलई सुरलोयहु गम्मइ ॥४२॥
१. दुक्ख दुक्खु सुहिहुंपावि० - वा० जे० J ॥ २. दुक्खई - सं०-२ ॥ ३. इ जु अ - वा० जे० ॥
॥ १६३ ॥