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भवभावना प्रकरण
पुष्पचूलकुमारण हरिणत्वे अनुभूत
वर्णनम्
तीरइ जम्हा सह कीलियाई पंसूइ तह य कुमरत्ते ।
सह गहियाओ कलाओ सहति न कयाऽवि य विओयं ॥५॥ तो जोवणपत्तेसु राया चिंतेइ जइ विओएमि । तो निच्छएण मरणं पावंति तओ जणे एयं ॥६॥ कहिउँ तह ववएसं का अन्नं पिकिंपि एयाइं । अन्नोऽन्नं परिणावेइ वारयंतीइ मायाए॥७॥ तो तेण विखेएणं देवी पव्वयइ उवरए य निवे। सो चेव पुप्फचूलो राया जाओ तहिं नयरे ॥८॥ सद्धिं च पुप्फचूलाइ विसयसोक्खाई अणुहवंतस्स । देवी काऊण वयं उववन्ना देवलोयम्मि ॥९॥ जाव पउंजइ अवहिं ता पेच्छइ ताई नियअवच्चाई । तो चिंतइ मा नरयं विसयपसत्ताई वच्चंतु ॥१०॥ धूयाए य सिणेहो अब्भहिओ उवरि पुप्फचूलस्स । एवं चिय सविसेसं तो पडिबोहेमि इय गंत रयणीइ तीइ सुमिणे नरये दंसेइ वन्नियसरूवे | अह भीसणदुक्खाई दठं निरयाण सा भीया ॥१२॥ इय निचं रयणीए मुमिणे सा नियइ भीसणसरूवे | नरए तो नरवइणो कहिऊणं तित्थिया तत्थ ॥१३॥ सदाविया तओ ते नरवइणा पुच्छिया य किंवा । नरया? इय कहह तो भणंति केई इहं चेव ॥१४॥
परवसय चिय नरओ सुणोऽवि हु जेण भमइ सच्छंदं । जो सुणयाओ वि अहिओ नरनाह ! सया परायत्तो ॥१५॥