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विलसंतं पेच्छइ तह य चिंतए तं अहिन्जियं निययं । तो भणइ 'अम्भवट्टा गहिया एक्कण नियपिउणा ॥
कह चंडालविटालो तेण कओ सब्वजणविरुद्धोऽवि |
इय चिंतिउं पुणो पुण चडइ पओसम्मि तस्सुवरि ॥२३॥ तो जाव चिंतए जइ निएमितं कत्थइ तओ सीसं । गिहामि सहत्थेणं इय वहमाणो मणे गाढं ॥२४॥ वेरं मरिऊण भवं भमिउं तो हत्थिणारे नयरे । उप्पन्नो सो विप्पो तिविकमो नाम कुणई य ॥२५॥
जन्ने महुविप्पोऽवि हु नरगाइसु हिंडिऊण तत्थेव । जाओ छगलो दिट्ठो तिविक्कमेणं कह वि एसो ॥२६॥ ॐ उप्पन्नपओसणं गहिउँ जन्नम्मि मारिउ भुत्तो । नो पुणरवि महुविप्पो परिभममाणो भवे लदधं ॥२७॥ पसुजम्मं पुत्तेणं वहिओ कत्थइ कहिंपि अन्नेहिं । दिन्नो बलीसु अतिहीण तह य भोज कओ पुट्ठो ।
जन्नेसु हओ एमेव मारि भंजिओ अणज्जेहिं । वाराओ अणंताओ अणेगसो नियसुएणावि ॥२९॥ | तो जाव महुस्स सुओ नंदिउरे वंभणो समुप्पन्नो । नामेण रुद्ददेवो मिच्छद्दिट्ठी महाकूरो ॥३०॥ चिोइ अन्नया सो य दिक्खिओ सह सुयाइवग्गेण | जन्नम्मि वहनिमित्तं बद्धो दरम्मि आणेऊं ॥३१॥ चिट्टइ इको य पसू समागओ तो पुरस्स तस्स बहिं । भयवं केवलनाणी बहुसीसगणेहिं परियरिओ॥ १. मज्म-सर्वासु ॥ २. निहओ-सर्वासु ॥
॥१५३॥