________________
केवलसंचयसीलो निदक्खिन्नो अईव किविणो य । नामेण समुहो वसइ वाणिओ दोसकुलभवणं ॥३॥
बहुला नामेण य तस्स भारिया नियडिकवडनिविडमणा।
किविणा करचंडा कूरमाणसा कलहसीला य ॥४॥ तत्तो धम्मो हियए वि नत्थि हट्टे समुवणियस्स । पावववहारनिरओ सया वि सो चिट्ठए नवरं ॥५॥ गेहे वहुला उण पंगणे वि दिह्रहिं भिक्खमाईहिं । पज्जलड कया वि न देइ किंपितो तीइ दारे वि ॥६॥ न चडइ कोऽवि हुनिच्छारयम्मि काओ वि न पडइ कयाइ । ताण महेसरदत्तो नामेणं विजए पुत्तो ॥ तस्स कए मूढाई दोन्नि वि संचंति धन्नधणमाई । पुत्तस्स भारिया गंगिल त्ति नामेण सह तीए ॥८॥ बहुला कलहइ निचं न देइ तीसे तहाविहं किं पि| भोयणमाई तह धरइ ताडिया दूरदरेण ॥९॥ तह वि हु सा धुत्तमई भूई भूई त्ति वाहरइ बहुलं । पुत्तोऽवि तो पसिद्धा भूई भूई त्ति लोएऽवि ॥१०॥
न मुयइ गिहं कयावि हु वीससइ न कस्सई तओ वहुया।
चिंतइ पत्ते नियवारयम्मि अहमचि भलिस्सामि ॥११॥ देवयमिय आराहड भत्तारं रंजए य विणएण । तत्तो कुडम्बकज्जे कयबहुपावो महामूढो ॥१२॥ पच्छा समुद्दवणिओ रोगायंकेहिं पीडिओ बाद । अवसट्टोवगओ मरिऊणं महिसओ जाओ॥१३॥
॥
१४१॥