________________
भव
तो घरस्स सामी जाओ गिहसामिणी य से भज्जा । तो तेणं हणिऊणं डोएणं मत्थर भूई ॥ १४ ॥ भावना दूरेण ताडिया अह गिहस्स दारम्मि चिट्ठा निविट्ठा। तह दहूणं पढियं तत्तो दियराइणा एयं ॥ १५॥ प्रकरणे
तद्यथा
कम्मsaणिय न गेहु मुयंती, बहुयई सहुं जुज्झि लग्गंती । मुणिवर पेक्खिवि मुहु मोडंती, देती चाडा फोडिहिं जंती ? ॥ १६ ॥ गेहममत्तिण पावु कुणंती, धम्मु मणि वि न कयाइ धरती ।
वह क्खिणियम्मी हुई, अच्छइ बारि बइट्ठी भूई ॥१७॥
अह वसामिभावं सुमरंती परभवे च पेच्छंती । अहज्झाणोवगया मरिऊणं सा वि गिदारे || १८ || उक्कुरुडियाइ जाया सुणिया तो गंगिलाइ सामित्तं । जायं अकंटयं जणयविहववित्थरियमाहप्पो ॥ अइगरुयसत्थवाहो महिडिओ बहुजणम्मि विक्खाओ । होइ महेसरदत्तो वि अन्नया गंगिला तत्थ | २० सच्छंद वियरंती गुरुयणरहिया निरंकुसा कुमई । घडियकुसंगा नियरूवजोत्र्वणुम्मायओ जाया ॥२१ अन्ना सत्ता तत्तो पट्ठिए अइपसंगभावम्मि | एसा तं परपुरिसं आणइ गेहे वि निस्संका ||२२|| अन्नदिणे भोत्तणं सो पुरिसो गंगिलं तहिं चेव । जा चिट्ठइ गोट्ठीए ता पविसंतेण दाराओ ||२३|| अवलोइओ महेसरदत्तेणं तो भएण सो तस्स । नीहरिडं नासतो निहओ छुरियाइ अह गंतुं ॥ २४ ॥
पापानि
कृत्वा
महिषभव
प्राप्तौ
समुद्रवणिक
कथा
॥ १४२ ॥