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तत्तो अहिन्जिऊणं कलाओ कालेण दो वि सगिहेसु | चिट्ठति तस्स कन्नाओ तो तहिं एंति बहुयाओ ॥ पियरं पि देवदिन्नो भणावए जह सरस्सई नाम । परिणावसु मं धूयं इह सुंदरसत्यवाहस्स ॥२३॥ एक्को चिय पुत्तो अइदुलंघवयणो तहा समुचिओ य । संयंधो तो तेणं भणाविओ सुंदरो एवं ॥२४॥ तेण वि धूया पुट्ठा भणियं तीए वि ताय ! किमजुत्तं ? तो गरुयपमोएणं पसत्थदियहम्मि एयाणं ॥२५॥ वित्तं पाणिग्गहणं तो सा पुणरवि न देवदिन्नेण | दिट्ठीए वि हु दिट्ठा पिउणा मायाए मेत्तेहिं ॥२६॥
तं नथि जन भणियं कस्स वि वयणं न मन्नियं तेण |
चिट्ठइ सरस्सई वि हु अक्खयसीला पिउघरम्मि ॥२७॥ तत्तो जोव्वणपत्तो आरुहिउं पवहणे अइबहणि | घेत्तं कयाणगाई पारसकूले गओ एसो ॥२८॥ | तत्तो पियंगुवणिणा सरस्सई नियघरम्मि आणीया । विणएणं ससुराइं चिट्ठइ सुस्सूसमाणी सा ॥२९॥ पारसकूलं पत्तो बहुणा कालेण देवदिन्नोऽवि । रयणाई घेत्तणं तो राया भेडिओ तत्थ ॥३०॥ पवाइया य एका वसइ तहिं बहुयबुद्धिकवडाणं । निलयम्भूया सा विहु समागए संकडे रन्नो ॥३१॥ तह कह वि कहइ बुद्धिं जह राया आवईउ नित्थरिउं । रिउनरवरे जिणे गिण्हइ रिद्धीओ ताणं पि॥ तो देइ बहुं दविणं कुणइ पसायं नराहिवो तीसे । उवविठ्ठा अत्थाणे सा दिवा देवदिन्नण ॥३३॥
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