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भवभावना
प्रकरणे
तो वीययम्मि दिवसे निमंतिउं तीए नियगिहे एसो । भुंजाविओ सगोरवमइसयवरभक्खभोजेहिं ॥ | गुत्ते कहिं पि देसे तस्सावासे थवावियं तीए । सयमवि सुवन्नथालं तो भुत्तुं गेहपत्तस्स ॥ ३५॥ पट्टविडं माणुस्सं भणावियं अम्ह कणयवरथालं । एवं नटुं तं पुण आणीयं तुम्ह तणएण ॥३६॥ केणावि ना करेज्जह निययावासम्मि तस्स सारंति । सव्वोऽवि देवदिन्नेण परियणो ' वड्ढि पुट्ठो | ३७ | आवासो य गविट्टो लद्धं तं नेय कत्थ वि इमेण । अह रायकुलदुवारे मिलिया पव्वाइया गोसे ॥३८॥ सो तीए तहिं धरिओ संजाओ तत्थ गुरुविवाओ त्ति । पवाइयाए भणियं जड़ कहमवि तुज्झ आवासे ॥ ३९ ॥
पावेमि अहं थालं ता तुह रिद्धिं समग्गमवि अहयं । गिण्हामि तहा दासो जावज्जीवं तुमं मज्झ ॥४०॥ अह नवि पावेमि तयं तह मह रिद्धी तुह चिय समग्गा । जावज्जीवं च अहं दासी सुस्सूसिया तुज्झ ॥ आमं ति देवदिन्नेण जंपिए सक्खिणो कया तीए । तो तेणं चिय सद्धिं आवासे तस्स संपत्ती ॥४२॥ तत्तो गवेसिऊणं पढमं ता अन्न अन्नठाणेसु । पच्छा चिरेण गहियं तेहिं चिय जेहिं तं थवियं ॥ ४३ ॥ २. चडिडउं - वा० जे० J. ॥
विकले
न्द्रिय गतौगमने
प्रियंगु
| वणिगा |ख्यानकम्
॥ १२४ ॥