________________
भवभावना प्रकरणे
भीमवि हणइ देसे रज्जजिगीसाइ कुणइ अप्पवसे । लोओऽवि कुणइ रावं उवेहए तह वि नरनाहो || तस्स सरूवं छष्णं पिउणो सुमई वि साहए सव्वं । किं कुणइ तह वि एसो मूढेणं पत्थिवेण समं ! ॥ पायं सव्वेसु तओ सो अप्पवसीकएसु देसेसु । एइ पिउसन्निगासे पभूयसेन्त्रेण परिकलिओ ॥ ४३ ॥ अमूढो राया विहु तह वित्थरसंजयं सुयं एतं । सोउं वारंतस्स वि सचिवस्स विणिग्गओ समुहो ॥ तो गहिओ हत्थे भीमेण अमचसंजुओ बाहिं । दुन्नि विपक्खित्ता कट्टपंजरे अह सयं रज्जे ॥४५॥ विट्ठो सुमईवि हु कुणइ अमचत्तण तओ भीमो । 'विलसेइ सयलदेसं कूरो अह अन्नदियहम् ॥४६ भणइ इमे उज्जालह अगणीए कट्टपंजरेण समं । अह सुमई भणइ तयं अपसिद्धी देव ! तुह एवं ॥ ४७ एवं ठियाण एसि किं जीवइ ? अह तहावि मारेसि। भूमीइ कट्टपंजरमेयं तो देव ! पच्छन्नं ॥४८॥ अमुत्थ निक्खणावसु तओ विरहिया य भत्तपाणेहिं । वाएण य परिहीणा इमे सयं चिय मरिस्सति ॥ सोऊण इमं तेण वि विहियं तह चैव सुमइणा वि तहिं । पाडाविडं सुरंगं नीया दोन्निविनियघर म्म ॥ जाओ य स ततो महापमत्तो स भीमनरनाहो । पारद्धीए निरओ घायंतो भूयलक्खाई ॥ ५१ ॥ निवस अडवीए चिय पायं भुंजइ सुएइ तत्थेव । सिंचाणसुणय चित्तयपमुहेहि य कुणइ पारद्धिं ॥५२॥ १. विलहइ सयलं देसं - J ॥
प्राणिवधे भीमन्नृप
आख्यान
वर्णनम्
॥ ९४ ॥