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| कालिज्जयाई गिण्हइ काण वि हिययाउ निद्दओ गिद्धो । भुंजइ काण वि अट्ठीइं गरुयमंसाई काणं पि॥ लावयतित्तिरमाईण यहुयरसए वसं च आवियइ । लक्खगुणं तं मूढो सयं कडं देइ लोयस्स ॥५४॥ पत्तो य भाणविमला परिभममाणा महाडइं एक । संपत्ता तेहिं तहिं दिट्टो विजं जवेमाणो ॥५५॥ बिल्लक्खेवेण हुयासणम्मि जलियम्मि जोइओ एको । तो कुमरेणं भणियं किं भद्द ! इमं समारद्धं ॥५६॥ तेण भणियं महायस! पभूयकालो गओ इहं मजझं । सुगुरुवएसुवलद्धं पयं विजं जवंतस्स ॥५७॥
तो भणइ भाणुकुमरो तं जइ मह भद्द ! जोग्गया अस्थि । ता देसु जेण साहेमि जीवियं वा विहु चएमि ॥५८॥
तो जोइएण सप्पुरिसपगइमभिणिच्छिउं तयं दिन्ना | सा विजा तो तेण वि गहियं पिल्लत्तियं हत्थे ।५९/ विजं जवि खित्तं एक बीयं तओ य पुण तइयं । वाराए चउत्थीए दिन्ना झंपा सयं नत्थ ॥१०॥ पट्टीए विमलेण विजा पडिया दोऽवि तत्थ चिट्ठति । ता डायागयखग्गो भाण पेच्छइ तहिं एक ६११ केवलवररयणमयं महाविमाणं फुरंतकिरणोहं । सन्निहियं रयणुज्जलकुंडलमसिणीकयकवोलं ॥२॥ १. 'वएससुलद्धं-J.॥
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