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सिद्ध
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तुम सत्य सुखी इह भाव क्षार, भये सिद्ध नसू उर हर्ष धार ॥३१॥
ॐ ह्रीं नानुमोदितमन क्रोधारम्भसस्थानाय नम अयं । दोहा--मान योग मन रंभमे, वरतत है जगजीव ।
भये सिद्ध संक्लेश तजि, तिन पद नमसदीव ॥३२॥
ॐ ह्री अकृतमनोमानारम्भसाधर्माय नमः अध्यं ।। मान उदय मन योगते, परको रम्भ करान । त्याग भये परमातमा, नमसरन पर हान ॥३३॥ ___ॐ ह्रीं अकारितमनो मानसरम्भअनन्यशरणाय नम अध्यं । मान सहित मन रंभमे, जगजिय राखै चाव । नमो सिद्ध परमातमा, जिन त्यागो इह भाव ॥३४॥ __ॐ ह्री नानुमोदितमनोमानमरम्भसुगतभावाय नम अध्यं ।
अडिल्ल छन्द । समारंभ परिवर्तमान युत मन धरे, विकल्पमई उपकरण विधि इकठे करै।। पूजा महा कष्टको हेत भाव यह ना गहो, प्रणमसिद्ध अनंत सुखातम गुण लहौ, ६५
ॐ ह्री अकृतमनोमानसमारम्भ सुखात्मगुणाय नमः अयं ।
चतुर्य