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मान सहित मनयोग द्वार चितवन करै,समारंभपर कृत्य करावन विधिवर मिद्ध० तहां कष्टको हेत भाव यह ना गहो, प्रणमसिद्ध अनन्तगुरणातम पद लहौ वि०
ॐ ह्री प्रकारितमनो मानसमारम्भ-अनन्यगताय नम. अध्यं ॥३६॥ ६६ जोड़े चितन समाजविविध जिस काजमे,समारंभतिसनाम सोम जिनराजमें माने मानी मन आनंद सु निमित्तसे,नम सिद्ध है अतुल वीर्य त्यागत तिसे।
___ ॐ ह्री नानुमोदितमनो मानसमारम्भअनन्तवीर्याय नम अयं ॥३७॥ अशुभकाज परिवर्तनाम प्रारंभको, मान सहित मन द्वार तास उद्यम गहो जगवासीजिय नितप्रतिपापउपाय है, गमो सिद्ध या रहित अतुलसुखरायहै
ॐ ह्री प्रकृतमनोयोगमानारम्भ-अनन्तसुखाय नम: अध्यं ॥३८॥ दोहा-मनो मान प्रारम्भके, भये अकारित आप । अतुल ज्ञान धारी भये, नमत नसै सब पाप ॥३६॥
ॐ ह्री प्रकारितमनो मानारम्भमनन्तज्ञानाय नम अयं ।। मनो मान प्रारम्भमे, नानुमोदि भगवंत । गुरण अनंत युत सिद्ध पद, पूजत है नित संत ॥४०॥ ___ॐ ह्री नानुमोदितमनो मान-आरम्भ-अनतगुणाय नमा अध्यं ।
पचम
पूजा
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