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• गुणपर्य प्रमाण दसा-नित ही, निजरूप न छांडत है कित हो। सिद्ध० जिन वैन प्रमाण सु धारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥७॥ वि.
ॐ ह्री अगरुलघुधर्माय नम अध्यं । ६० जितने कछु है परिणाम विषै, सब चित्त स्वरूप सुजान तिसै । मुख चेतनता गुरण धारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥८॥
ॐ ह्री चेतनत्वधर्माय नम अर्घ्य । जिन अंग उपंग शरीर नहीं, जिन रंग प्रसंग सु तीर नहीं। नभसार अमूरति धारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥६॥
ॐ ह्री अमूर्तित्वधर्माय नम अर्घ्य । परको न कदाचित धर्म गहै, निजधर्म स्वरूप न छांडत हैं। अति उत्तम धर्म सुधारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥१०॥
ह्री समकितधर्माय नम अयं । जितने कछु हैं परिणाम विौं, सब ज्ञान स्वरूप सु जान तिसै।। सुख ज्ञानमई गुण धारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥११॥
ॐ ह्री ज्ञानधर्माय नम अध्यं ।
पंचम
पूजा
६०