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चिन्मय चिन्मूरति जीव सही, अति पूरणता बिन भेद कही। सिद्ध निज जीव सुभाव सुधारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥१२॥ वि.
ॐ ह्री जीवधर्माय नमः अध्यं । ६१, मनको नहिं बेग लखावत है, जिस बैन नहीं बतलावत है। अति सूक्षम भाव सुधारत है, हम पूजत पाप विडारत है ॥१३॥
—- ॐ ह्री सूक्ष्मधर्माय नम. अंध्यं । परघात न आप न घात करें, इक खेत समूह अनन्त वरै। अवगाह सरूप सुधारत है, हम पूजत पाप विडारत हैं ॥१४॥
_____ॐ ह्री अवगाहधर्माय नमः अध्यं ।। अविनाश सुभाव विराजत है, बिन बाध स्वरूप सु छाजत है। यह धर्म महागुण धारत हैं, हम पूजत पाप विडारत है ॥१५॥
ॐ ह्री अव्याबाधधर्माय नमः अर्घ्य । निजसों निजकी अनभूति करें, अपनो परसिद्ध सुभाव वरै। निज ज्ञान प्रतीति सुधारत है, हम पूजत पाप विडारत हैं ॥१६॥ पूजा
ॐ ह्री स्वसवेदनशानाय नम. अध्यं ।
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