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धूलि सार छवि हरण विवजित, फूलमाल लाई।। सिद्ध०५ काम शूल निरमूल करणकों, पूजहू तुम पाई ॥ सिद्ध०॥ वि० ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुपष्ठि गुणसहित श्री समत्तरमाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव । ३७ वग्गाहण अगुरुलघुमब्बाबाह कामवाणविनाशनाय पुष्प नि•॥ ४॥
भूखा गार अक्षीण रसी हू, पूरति है नाई।। चारुमाल तुम पद पूजत हों पूरन शिवराई ॥ सिद्ध०॥
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुषष्ठि-गुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहरण अगुरुलघुमबाबाह सुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि०॥ ५॥
दीपनि प्रति तुम पद नित पूजत, शिव मारग दरशाई। घोर अंध संसार हरण की, भली सूझ पाई ॥सिद्ध०॥
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुषष्ठि गुणसहित श्री समतणाणदसणवीयं सुहमत्तहेवा प्रवग्गाहण भगुरुलघुमब्बाबाहं मोहाधकारविनाशनाय दीप नि० ॥६॥ कृष्णागरु कर्पूर पूर घट, अगनीसे प्रजलाई।
पूजा उडै धूम यह, उडे किधों जर करमनकी छाई ॥सिद्ध०॥ ३७
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुषष्ठि गुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव १ अवग्गाहणं अगुरुलघुमब्बाबाह अष्टकर्मदहनाय धूप नि० ।। ७ ।।
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प्रथम