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सिद्ध वि.
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अथाष्टकं । चाल लावनी सिद्धगरण पूजो हरषाई, चौंसठि गुरणनामा विधिमाला' सुमरों सुखदाई, सिद्धगरण पूजोरे भाई ॥ आंचली ॥ त्रिभुवन उपमा वास लखै, तुम पद अम्बुज के माई। निर्मल जलकी धार देह, अवशेष करण ताई ॥ सिद्ध०॥
ॐ ह्री णमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतु षष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य । सुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुलघुमव्वावाह जन्मजरारोगविनाशनाय जल ।।१।।
तुम पद अम्बुज वास लेन मनु, चन्दन मन माई। निजसो गुरगाधिक्य संगतिको, लहिय न हर्षाई ॥सिद्ध०॥
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतु षष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव प्रवग्गाहण अगुरुलघुमव्वावाह ससारतापविनाशनाय चदन नि० ॥२॥ क्षीरज धान सुवासित नीरज, करसों छरलाई।
प्रथम अंगुलसे तंदुलसो पूजत, अक्षय पद पाई ॥ सिद्ध०॥ पूजा
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुःषष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसण वीर्य सुहमत्तहेव १ ३६ अवग्गाहण अगुल्लघुमन्वावाह अक्षयपदप्राप्तये अक्षत नि.||३||
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