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________________ सिद्ध वि. ३६ अथाष्टकं । चाल लावनी सिद्धगरण पूजो हरषाई, चौंसठि गुरणनामा विधिमाला' सुमरों सुखदाई, सिद्धगरण पूजोरे भाई ॥ आंचली ॥ त्रिभुवन उपमा वास लखै, तुम पद अम्बुज के माई। निर्मल जलकी धार देह, अवशेष करण ताई ॥ सिद्ध०॥ ॐ ह्री णमो सिद्धाण श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतु षष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य । सुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुलघुमव्वावाह जन्मजरारोगविनाशनाय जल ।।१।। तुम पद अम्बुज वास लेन मनु, चन्दन मन माई। निजसो गुरगाधिक्य संगतिको, लहिय न हर्षाई ॥सिद्ध०॥ ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतु षष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव प्रवग्गाहण अगुरुलघुमव्वावाह ससारतापविनाशनाय चदन नि० ॥२॥ क्षीरज धान सुवासित नीरज, करसों छरलाई। प्रथम अंगुलसे तंदुलसो पूजत, अक्षय पद पाई ॥ सिद्ध०॥ पूजा ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुःषष्ठिगुणसहित श्री समत्तणाणदसण वीर्य सुहमत्तहेव १ ३६ अवग्गाहण अगुल्लघुमन्वावाह अक्षयपदप्राप्तये अक्षत नि.||३|| ANAM
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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