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सिद्ध
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मधुर मनोग सुप्रासुक फलसो, पूजो शिवराई। यथायोग विधि फलको दे गुरण, फलकी अधिकाई ॥सिद्ध०॥
ॐ ह्री श्री सिद्धपरमेष्ठिने चतुष्ठि गुणसहित श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव बग्गाहण अगुरुलघुमन्बाबाह मोक्षफलप्राप्तये फल ॥ ८ ॥ निरघ उपावन पावन वसुविधि, अर्घ हर्ष ठाई। भेट धरत तुम पद पाऊं पद,-निर आकुलताई ॥ सिद्ध०॥
ॐ ह्री सिद्धपरमष्ठिने चतुपष्ठि गुणसहित श्री ममत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवगाहण प्रगुरुनघुमवापाह सबमुखप्राप्ताय अयं निर्वपामोति स्वाहा । १॥
अथ चौसठि गुण सहित अर्घ ।
चाल छन्द । चउ घाती कर्म नशायो, अरहंत परम पद पायो। द्व धर्म कहो सुखकारा, नमू सिद्ध भए अविकारा ॥१॥ * ही अरहन-जिनमिद्धेभ्यो नम अध्यं ।
प्रथम संक्लेश भाव परिहारी, भए अमल अवधि बलधारी।
पूजा सो अतिशय केवलज्ञाना, उपजाय लियो शिवथाना ॥२॥
ॐ ह्री अवधिजिनसिद्धग्थो नम अर्घ्य ।