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करि दीपमाल उजाल धूपायन रसायन फल भले, करि अर्घ सिद्ध समूह पूजत कर्मदल सब दलमले ॥ ते कर्मवर्त नशाय युगपत ज्ञान निर्मलरूप है, दुख जन्म टाल अपार गुरण सूक्षम सरूप अनूप है। कर्माष्ट विन त्रैलोक्य पूज्य अछेद शिव कमलापती, मुनि ध्येय सेय अमेय चाह, ज्ञेय यो हम शुभमती॥ ____ॐ ह्री सिद्धचक्राधिपतये नम सम्मतणाणादि-गुणसयुक्ताय महागें ।
अथ सोलहगुरण सहित अर्घ ( त्रोटक छन्द ) ६ दर्शन आवर्णी प्रकृति हनी, अथिता अवलोक सुभाव बनी।
इक साथ समान लखो सब ही, नमुसिद्ध अनंत हगन अबही ॥१॥ ___ॐ ह्री अनन्तदर्शनाय नमः अध्यं । विधि ज्ञानावर्ण विनाश कियो, निज ज्ञान स्वभाव विकास लियो। पूजा समयांतर सर्व विशेष जनों. नमु ज्ञान अनंत सु सिद्ध तनो ॥२॥ १७ ___ॐ ह्री अनन्तज्ञानाय नम अयं ।
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प्रथम
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