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प्रासुक सुगंधित द्रव्य सुन्दर दिव्य घारण सुहावनो,
धरि अग्नि दश दिश वास पूरित ललित धूम सुहावनो। सिद्ध तुम भक्ति भाव उमंग करत प्रसंग धूप सु विस्तरू,
षोडश गुरणान्वित सिद्धचक्र चितार उर पूजा करूं ॥धूपं॥७॥ ६चित हरन अचित सुरंग रसपूरित विविध फल सोहने, । रसना लुभावन कल्पतरुके सुर असुर मन मोहने । ६ भरिथाल कंचन ,भेट धरि संसार फल तृष्णा हरू,
षोडश गुणान्वित सिद्धचक्र चितार उर पूजा करू ॥फलं॥८॥ ६ शुभ नीर वर काश्मीर चंदन धवल अक्षत युत अनी, ६ वर पुष्पमाल विशाल चरु सुरमाल दीपक दुति मनी । । वर धूप पक्क मधुर सुफल लै अर्घ अठ विवि संचरू, षोडश गुणान्वित सिद्धचक्र चितार उर पूजा करू॥॥६॥ प्रथम
निर्मल सलिल शुभवास चंदन धवल अक्षत युत अनी, शुभ पुष्प मधुकर नित रमै चरु प्रचुर स्वाद सुविधि घनी।
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