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॥ अथाष्टक ।।
सिद्ध
वि.
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गीता छंद--हिमशैल धवल महान कठिन पाषाण तुम जस रासते,
शरमाय अरु सकुचाय द्रव ह वै बहो गंगा तासतै । सम्बन्ध योग चिलार चित भेटार्थ झारी मे भरू,
षोडश गुणान्वित सिद्धचक्र चितार उर पूजा करू ॥१॥ ॐ ह्री णमोसिद्धपरमेष्ठिने नम श्रीसमत्तणाणदसणवीर्यसुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुलगुमवावाह पोडशगुणसयुक्ताय जल निर्वामीति स्वाहा । काश्मीर चन्दन आदि अन्तर बाह्य बहुविधि तप हरै, यह कार्य कारण लखि नमित मम भाव हू उद्यम करै। मै हूँ दुखी भवताप से घसि मलय चरणन ढिंग धरू, षोडश गुणान्वित सिद्धचक्र चितार उर पूजा करू ॥२॥ ____ॐ ह्री णमोसिद्धाण श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम श्रीसमत्तणाण दसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहण अगुरुलघुमव्वावाह पोडशगुणसयुक्ताय चन्दन नि०। सौरभि चमक जिस सह न सकि अम्बुज बस सरताल मे, शशि गनन बसि नित होत कृश अहिनिश भ्रमै इस ख्यालमे।
प्रथम