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द्रव्य भाव मल कर्म है, ताको नाश करान । ' सिद्धः शुद्धनिरंजन होरहै, ज्यों बादल विन भान ॥ॐ ह्री प्रहं निर्मलाय नम अध्यं ।६६१॥ वि० तुम चित्राम अरूप है, सुरनर साधु अगम्य ।
निराकार निर्लेप है, धारत भाव असम्य ॥ ॐ ह्रीमह चित्रगुप्ताय नम अध्यं ।६६२।। मग्न भये निज आत्ममें, पर पदमें नहिं वास । लक्ष अलक्ष विराजते, पूरो मन की प्राश ॥ॐ ह्रीअहंसमाधिगुप्तये नम अध्य।।६६३।।। निजगुण प्रातम ज्ञान है, पर सहाय नहीं चाह । स्वयं भाव परकाशियो,नमत मिटै भव दाह ह्रीं अहं स्वयमुवे नम अध्यं ।६६४१ । मन मोहन सोहन महा, मुनि मन रमरण अनन्द । महातेज परताप हैं, पूरण ज्योति अमन्द ॥ॐ ह्री ग्रह कदय नमःअध्यं ।।६६५ । । विजय लक्ष्मी नाथ है, जीते कर्म प्रधान । तिनको पूजै सर्व जग,मै पूजो धरि ध्यान ॥ ह्रीमहं विजयनाथाय नम प्रध्य।६६६। पूजा गणधरादि योगीश जे, विमलाचारी सार। तिनके स्वामी होप्रभू, राग द्वष मल जार ॥ ही महं विमलेशाय नम अध्यं ।।६।।
प्रष्टम
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