________________
रक्षक हो षट्कायके, दया सिन्धु भगवान ।
सिद्ध शशिसम जिय श्राह्लादकरिपूजनीकधरिध्यान। हो म उदकाय नम. प्रयं । ६५४ समाधान सबके करै, द्वादश सभा मझार ।
वि०
Bye
सर्वश्रर्थ परकाश कर, दिव्य ध्वनि सुखकार ॥ ॐही यह प्रश्नकीर्तये नमः प्रच्यं ॥ काहू विधि बाधा नहीं, कबहू नहीं व्यय होय ।
उन्नति रूप विराजते, जयवन्तो जग सोय ॥ॐ ह्री श्रहं जयाय नम प्रध्यं ।। ६५६ ॥ केवल ज्ञान स्वभावमे, लोकत्रय इक भाग ।
पूरणताको पाइयो, छांडि सकल अनुराग ॥ ॐ ह्री ग्रहं पूर्णत्रुवाय नमःप्रयं । पर प्रालिंगन भाव तज, इच्छा क्लेश विडार ।
निज संतोष सुखी सदा, पर संबंध निवार ॥ही ग्रहं निजात वसतुष्टजिनाय नम प्रध्यं मोहादिक मल नाशकर, अतिशय करि श्रमलान ।
विमल जिनेश्वर मै नमू, तीन लोक परधान॥ ह्रीम विमलप्रमायनम प्र. ६५६ प्रष्ट स्वपदमे नित रमत है, कभी न आरति होय । तुलवीर्य विधि जीतियो, नमूं जोरकरदोय॥ ही महावनाय नम. मध्यं । ६६०
पूज
३४८
wwww