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________________ र वि० ३४८ निज आश्रय निर्विघ्न नित, निज लक्ष्मी भण्डार । चरणाम्बुजनितनमत हम,पुष्पांजलिशुभधार ॐ ह्रीग्रहमहापद्माय नम प्रम॑६४७ ।। हो देवाधीदेव तुम, नमत देव चउ भेव। ह्रीं प्रहं सुरदेवाय नम अयं ।।६४।। निरावर्ण आभास है, ज्यो बिन पटल दिनेश। लोकालोक प्रकाश करि,सुन्दर प्रभा जिनेश ॥ॐ ह्री प्रहं सुप्रमाय नम अयं ॥ प्रातमीक जिन गुरण लिये, दीप्ति सरूप अनुप । स्वयं ज्योति परकाशमय, बंदत हूं शिवभूप ॥ॐ ह्रीं अहं स्वयप्रमाय नम अयं । निजशक्ती निज करण है, साधन वाह्य अनेक । मोहसभट क्षयकरनको, आयुध राशि विवेक ह्रीं अहं सर्वायुधाय नम अयं । जयजय सुरधुनि करत है, तथा विजय निधिदेव । तुम पद जे नर नमत है, पावै सुख स्वयमेव॥ ह्रीं अहं जयदेवाय नम मध्यं ॥ अष्टम तुम सम प्रभा न पोरमें, धरो ज्ञान परकाश । पूजा नाथ प्रभा जगमे भये,नमत मोहतम नाश ह्रीं अहं प्रमादेवाय नम अध्यं १६५९ ३४८
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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