________________
३४७
इ सुरनर मुनि नित नमन करि, जान धरम अवतार । तिनको पूजू भाव युत, लहूँ भवार्णव पार ॥ ही प्रहं नमिनायायनम प्रय॑६४० ।
नेम धर्म में नित रमे, धर्मधुरा भगवान । मिद्ध धर्मचक्र जगमे फिरे, पहुँचावे शिव थान ॥ ॐह्रौं पई नेमिनायाग
शरणागति निज पास दो, पाप फांस दुख नाश । तिसको छेदो मूलसों, देह मुकत गति वास ॥हीमहपाश्वनाथाय नम प्रध्य ।६४२॥
वृद्ध भावतें उच्चपद, लोक शिखर आरुढ । । केवल लक्षमी बर्द्धता, भई सु अन्तर गूढ ॥ ह्रीं ग्रह वर्द्धमानाय नम'मयं ।।६४३।। ६ अतुल वीर्य तन धरत है, अतुल वीयं मन बीच । ६ कामिन वश नही रंचभी, जैसे जल बीचमीच ॥ह्रींप्रहमहावीरायनम.प्रध्य। ६४४ ६ मोह सुभटकू पटकियो, तीन लोक परशंस ।
श्रेष्ठ पुरुष तुम जगतमें, कियो कर्म विध्वंस ॥ह्रीं प्रहं सुयोराय नम:प्रयं ॥१४५३ इमिथ्या-मोह निवार करि, महा सुमति भण्डार ।
१३४७ ३ शुभ मारग दरशाइयो,शुभअरुप्रशुभविचार ॥ॐ ह्रीं पहं सन्मतये नम.अध्य। ६४६
प्रष्टय
पूजा