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अमृतमय तुम जन्म है, लोक तुष्टताकार । सिद्ध जन्म कल्याणक इन्द्र कर,क्षीरनीर करधार॥ह्रीमहंप्रमृतोद्भवायनम प्रध्या५४६ वि० इन्द्री विषय सुविषहरण, काम पिशाच विडार । ३३४ मूर्तीक'शुभ मंत्र हो, देव जजै हित धार ॥ ह्री महं मत्रपतये नमःप्रयं ।।५५० ॥
'सौम्य दशा प्रकटी घनी, जाति विरोधी जीव । वैर छांड समभाव धर, सेवत चरण सदीव ॥ ह्रींप्रहं निरसौम्यमावायनम प्रय पराधीन इन्द्री विना, राग विरोध निवार । हो स्वाधीन न कर्णपर, स्वयं सिद्ध सुखकार ॥होमहस्वतन्त्राय नम'प्रध्या५५२ ब्रह्मरूप नहीं बाहय तन, संभव ज्ञान स्वरूप । स्वयंप्रकाश विलास धर,राजत अमल अनूप ॥ ह्रीमहंग्रह्ममम्मवायनमःमध्यं५५३ पानन्दधार सु मगन है, सब विकल्प दुख टार ।
प्रष्टम पर प्राश्रित नहीं भाव है, पूजू आनंद धार॥ ही अहं सुप्रसन्नाय नम प्रध्यं ।५५४) पूजा परिपूरण गुरण सीम है, सर्व शक्ति भण्डार ।
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वकार।।ॐहीं पहं गुणधिये नमःप्रध्यं ५५५।'