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वीतराग श्रद्धानता, संपूरण वैराग ।
वि०
हीग्र प्रमदमावायनम ग्रयं । ५४३
सिद्ध द्वेषरहितशुभगुरणसहित, रहू सदापगलाग ॥ ॐ ही ग्रहं स्नातकाय नमः प्रन्ये ॥ ५४२१ माया मद श्रादिक हरे, भये शुद्ध सुख खान । निर्मल भाव थकी जजू, होत पाप की हान अतुल वीर्य जा ज्ञानमें, सूर्य समान प्रकाश । मोक्षनाथ निज धर्म जुत, स्व ऐश्वर्य विलास ॥ह्रीम परमैश्वपयतम प्रध्यं । ५४४ मत्सर क्रोध जु ईर्ष्या, पर में द्वेष सुभाव ।
सो तुम नाशो सहजी, निंदितदुषित विभाव ॥ प्रीतमत्सराय नम प्रयं । धरम भार सिर धारकर, समाधान परकाज ।
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तुमसमश्रेष्ठ न धर्म अरु, तारण तरणजिहाज ॥ ॐ ह्रीमह्यमनृपायनम प्रध्य ५४६ क्रोध कर्म जडसे नसौ, भयो ज्ञोभ सब दूर |
महा शांति सुखरूप हो, पूजत अघ सब चूर ॥ होप्रत्रक्षोमाय नमः श्रर्घ्यं । ५४७ इष्टमिष्ट बादरझरी, विद्युत विधि कर खण्ड |
. जिष्णुमहा कल्याणकर, शिवमग भागप्रचण्ड ॥ ह्रीममहाविघिसडायनम श्रध्य
प्रष्टम
पूजा
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