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________________ १२५६ । तीन लोक मंगल करण, दुखहारण सुखकार । सिद्ध हमको मंगल द्यो महा, पूजो बारम्बार॥हीमहंत्रिजगन्मगलोदयायनम प्रध्या४८६ १६ पाप धर्मके सामने, और धर्म लुप जॉय । धर्म चक्रायुध धरो, शत्रु नाश तब पाँय।। ह्रीमहं धर्मनक्रायुधाय नमःमध्य।। । सत्य शक्ति तुम ही सही, सत्य पराक्रम जोर । हैप्रसिद्ध इस जगतमे, कर्म शत्रु शिरमोर ॥ ह्रींप्रह मद्योजातायन नम अध्य।।४८८ 5 मंगलमय मंगलकरण तीन, लोक विख्यात । । समररणध्यानसु करतही, सकलपापनाशि जात ॥ ह्रीपहनिमोफमगलाय नम'प्रध्य। द्रव्य भाव दऊ वेद विन, स्वातम रति सुख मान । पर आलिंगन रतिकरण, निरइच्छुकभगवान ॥ ह्रीं प्रहं प्रवेदाय नम'प्रय ४६० ई घातिरहित स्वपर दया. निजानन्द रसलीन। अष्टम सखसों अवगाहन करै, संत चरण आधीन ॥ ह्रीपहं प्रप्रतिघाताय नम प्रध्या४६॥ पूजा निजानन्द स्व-देशमें, खंड खंड नहीं होय । पूरण अविनाशी सुखी, पूजत हूँ भूम खोय॥ही ग्रहं पच्छेद्याय नमःप्रय ४२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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